नई कलम - उभरते हस्ताक्षर आज से एक नया स्तम्भ प्रारम्भ करने कर रहा है- "महफिले ग़ज़ल"। यहाँ आप ग़ज़ल लेखन की बारीकियां जान पाएंगे। इस स्तम्भ को हम युवा कथाकार पंकज सुबीर जी की मदद से प्रस्तुत कर रहे हैं।
आशा करते हैं ,आप ग़ज़ल को बखूबी समझ पाएंगे। आप अपनी प्रतिक्रिया देकर सीधे सुबीर जी से सवाल -जवाब कर पाएंगे। आईये हम सब "महफिले ग़ज़ल" का लुत्फ़ उठायें।
- संपादक
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हम भी हो गए, क्लास में शामिल।
ReplyDeleteswagat hai dinesh rai ji
ReplyDeleteसुबीर जी ,धन्यवाद आपके साथ ही केसरी जी को भी जिनसे आपका पता चला /
ReplyDeleteचलिए ,आपका शिष्य बनकर सही सही कंटेंट तो पता चलता रहेगा
धन्यवाद
सादर डॉ.भूपेन्द्र
बधाई। यह एक बहुत अच्छी कोशिश है। दरअसल बहुत से लोग ग़ज़ल के नाम पर जाने क्या क्या लिख रहे हैं। इनमे से कई लोगों में तो काफ़ी संभावनाएं हैं। मेरा मानना है ग़ज़ल लिखें तो ग़ज़ल की तरह वरना उसे सिर्फ़ फैशन के लिए ग़ज़ल न कहें। पहले ग़ज़ल का फॉर्मेट सीखें, फ़िर उसकी नजाकत पकडें। धीरे-धीरे बात बनेगी और आपकी ग़ज़ल में कैफियत और तगज़्ज़ुल आने लगेगा।
ReplyDeleteआप ग़ज़ल के लिए एक अच्छा काम कर रहे हैं। मुबारकबाद।
डॉ जगमोहन राय